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13- 06- 22धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 10



शाम  हो चुकी  थी । ज़ोया अपने कमरे  में बैठी  पढ़  रही  थी  या यूं कहे  की सिर्फ हम्माद से नाराज़गी की वजह  से वो मजबूरन  किताब खोले  बैठी  थी  नही तो वो और उसका मोबाइल दो हंसो  के जोड़े की तरह  था ।


इसी बीच  उसकी अम्मी उसे बावर्ची  खाने से आवाज़  देती कुछ  काम के लिए । ज़ोया ना चाहते  हुए  अपनी अम्मी के पास गयी  और बोली " जी अम्मी क्या हुआ, क्यू आवाज़  दे रही  थी  "

"इसलिए  आवाज़  दे रही  थी  कि रसोई  में मेरा कुछ  हाथ  बटा दो और कुछ  घर  दारी भी  सीख  लो, कब तक यूं ही किताबों और मोबाइल में घुसी  रहोगी । ये दोनों तुम्हे रोटी नही दे सकते , तुम्हे ही बनाना  पड़ेगी  "पास खड़ी  उसकी माँ ने कहा

ज़ोया ये सुन घबरा  गयी  और बोली " ख,,,,, ख,,,, खाना बनाना  सीख  लू  और मैं "

"क्यू तेरे लिए  क्या फ़रिश्ते  बना कर  लाएंगे  खाना  आसमान  से या फिर  हवा  खा कर  ज़िंदा रहने  का इरादा है  जो इस तरह  कह  रही  है  " उसकी माँ ने उसकी बात काटते हुए  कहा

"मैं नही सीख  रही  ये सब  कुछ , मुझे नही बनना  आप  और आपी  जैसी घरेलु  औरत  जो दिन भर  दूसरों के लिए  खाना  बनाते  बनाते , उनकी फरमाइश  पूरी  करते  करते  ही अपने आपको  बीमारियों का घर  बना  ले और एक दिन बिस्तर - ए - मर्ज पर  गिर कर  मर जाए " जोया ने कहा

"हाँ, अब तेरे लिए  कोई राजकुमार ढूंढ कर  लाएंगे , जिसके घर नौकरानियाँ लगी  हो चप्पे  चप्पे  पर  खिदमत  करने  के लिए , चुप  चाप से खाना बनाना  सीख  ये सब  बाते बस  किस्से कहानियो में ही अच्छे लगते  है । कि सपनों का राजकुमार आता  है  घोड़ी  पर बैठा  कर  अपनी रानी बना  कर  ले जाता है ।

हकीकत  इससे बहुत  मुख्तालीफ होती है  और बहुत संघर्ष से भरी  इसलिए कल  को मेरे मरने  के बाद तुझे  तेरी सास ताना ना दे इसलिए  मेरे जीते जी खाना  बनाना  सीख  ले जैसे तेरी बहन  ने सीखा  था । पढ़ाई के साथ  साथ  " उसकी माँ ने कहा

उफ्फ, अम्मी सीख  लूंगी अभी बहुत  समय  पड़ा  है , जिंदगी भर  यही  तो करना  है  ससुराल  में, अभी  यहाँ अपनी जिंदगी जी  लेने दो मुझे  और सास ki फ़िक्र मत  करो  ऐसी औरतों को मुझे  ठीक  करना  आता  है  जिन्हे बहुए नही नौकरानी की ज़रूरत  होती है  अपने घर  के लिए  ज़ोया कुछ  और कहती  तभी  सहर ने उसकी बात बीच  में ही काटते हुए  कहा

बगैरत , मेरी नाक कट वाएगी  ससुराल  में जाकर सब  यही  कहेँगे  माँ ने ही सब कुछ  सिखाया होगा जबकी  उन्हें क्या पता  की ये सब  तो ये मोबाइल और ड्रामो से सीख  रही  है 


"बस  लोट फेर  कर  आप  सब लोग मोबाइल पर  ही आ जाया कीजिये कोई भी  काम ख़राब  हो सारा कसूर  बेचारे  मोबाइल पर  डाल दो " ज़ोया ने माँ की बात काटते हुए  कहा

"और क्या सारी फसाद  की जड़ ये मोबाइल ही तो है , सब की औलाद  को ख़राब  करने  में इसी मनहूस  का हाथ  है , जिसे देखो  इसी में ही लगा  रहता  है  किसी दिन मेरा बस  चला  तो सब को आग  में जला  कर भस्म कर दूँगी  फिर  चलाती  रहना , ये नही किताबें खोल  कर  कुछ  पढ़ा जाए, माँ का हाथ  बटाया जाए काम में कुछ  नया  सीखा  जाए बस  जहाँ समय  मिला बैठ  गए  हाथ  में उस फितने को लेकर और मुस्कुरा रहे  है  देख  देख  कर " उसकी अम्मी ने कहा

इससे पहले  ज़ोया कुछ  और कहती  तभी  बावर्ची  खाने  में उसके अब्बू आ जाते और कहते  " क्या बात किस बात पर  इतनी बहस  चल  रही  है  माँ बेटी में "

सहर घबरा कर  कहती " आ,,, आ,,, आप  कब  आये  दरवाज़े  पर  दस्तक  की आवाज़  भी  नही सुनाई  दी "

"दरवाज़ा  खटखटाने की ज़रुरत  ही नही पड़ी दरवाज़ा  पहले  से ही खुला  था  " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"क्या, दरवाज़ा  खुला  था  पर  कैसे मेने तो अंदर  से बंद  किया था  बावर्ची  खाने  में आने  से पहले " सेहर ने कहा

"शायद  अली गया  होगा दोस्तों के साथ  खेलने  इसलिए  जल्द बाज़ी में दरवाज़ा  खुला  ही छोड़  गया  होगा " जोया ने कहा

"अच्छा, लेकिन तुम आज  बावर्ची  खाने  में क्या कर  रही  हो वो भी  गर्मी में और किस बात की इतनी बहस  चल  रही  थी  की आवाज़  बाहर  बरामदे तक  आ  रही  थी  "अशफ़ाक़  साहब  ने पूछा 

"देखे  ना अब्बू, अम्मी मुझे आपी  की तरह  अभी  से ही घर  का काम सीखने  का कह  रही  है  अभी  तो मेरा कॉलेज  भी  ख़त्म  नही हुआ है  " ज़ोया ने कहा

"अगर अभी  से नही सीखेगी  तो क्या ससुराल  में जाकर सीखेगी  जब  सास  और नन्दे सर पर  खड़ी होंगी " सहर  ने उसकी बात बीच  में ही काटते हुए  कहा

"सीख  लेगी आज  नही तो कल , वैसे भी  अभी  वो पढ़  रही  है  और ना अभी  मेरा इसे इस घर  से विदा करने  का कोई इरादा है , बड़ी  बेटी को मेने तुम्हारी ज़िद्द की वजह  से जल्दी ब्याह दिया था  लेकिन अब ऐसा नही होगा। जब  तक  इसकी पढ़ाई  पूरी  नही हो जाएगी तब  तक  इसकी शादी  नही करूंगा  और आपको  भी  अभी  से इसे कुछ  घर  दारी सिखाने  की ज़रुरत  नही जब  समय  आएगा  तब  सीख  जाएगी " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

ज़ोया अपने अब्बू के गले  लग  गयी ये सुन कर  और अपनी माँ से बोली "  शुक्रिया अब्बू,अब सुन लिया आपने  अब मुझे  गर्मी में बावर्ची  खाने  में खाना बनाने  सीखने  के लिए  मत  आवाज़  देना अब जब  मेरा दिल करेगा तब  सीख  लूंगी  "

"आप  ने ही इसे सर  चढ़ा रखा  है , जब  ही तो ये मेरी किसी भी  बात को संजीदा  नही लेती हर  बात को हसीं मज़ाक  में टाल देती है। ठीक  है  जैसे आपकी  मर्ज़ी जब  सास ताने देगी तो आप  ही सुनना मुझसे  तो कुछ  मत  कहना  " सहर  ने गुस्से में कहा 


"ठीक  है , ठीक  है  अब खाना  ले आओ  बहुत  भूख  लगी  है , मैं जब  तक  देख  कर  आता  हूँ ये अली कहा चला  गया  दरवाज़ा  खोल  कर  " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"जी बस  15 मिनट  और लेगेंगे अभी  बस  रोटी सेख लू " सहर  ने कहा

ज़ोया अपने कमरे  में जाने लगी  तभी  सहर  ने कहा " जाओ जब  तक  पानी निकाल लाओ फ्रिज  से और दास्तरखवान लगा  लो खाना  बस  तैयार है  खाना  खा कर  ही अंदर  कमरे  में जाना "

जोया मुँह बना  कर  फ्रिज  की और चली  गयी ।

सहर  उसे देख  कर  अपने आप  से बोली " पता  नही क्या बनेगा  इस लड़की  का, बिलकुल भी  घर  के कामों में इसकी दिलचस्पी  नही है  मुझे  तो डर है  कि कही  ज़ालिम ससुराल  वाले मिल गए  तो इसका क्या होगा दो दिन में ही भाग  कर आ  जाएगी अल्लाह ना करे "


वही  दूसरी  तरफ  साद घर  से दोपहर बाद दुकान पर  जाने का कह  कर  निकला लेकिन गया  नही और दोस्तों के साथ  अवारा गर्दी करने  निकल गया ।

दुकान पर  तबरेज  उसका इंतज़ार  करता  रहा  लेकिन वो नही आया  वो मामू को फ़ोन  करके  पूछना  चाहता  था  लेकिन काम के सिलसिले में भूल  ही बैठा  और दोपहर  से शाम  हो गयी  और दुकान बंद  करने  का समय  आन  पंहुचा । तबरेज  पैसे साद को देना चाहता  था  लेकिन वो तो आया  ही नही इसलिए  मजबूरन  आज  फिर  उसे खुद  ही अपने मामू के घर  जाना पड़ रहा  था  जानते हुए  भी  की उसकी मामी उससे खुश  नही होती है  और आज फिर  वो पैसो को लेकर कुछ  ना कुछ  ज़रूर  कहेगी ।


वो पैसे हाथ में लिए  अपने मामू के घर  जा ही रहा  था  की उनके घर  पहुंचने  से पहले  ही हसन  साहब  उसे रास्ते में ही मिल गए । उन्हें देखते  ही तबरेज  ने उनके पास जाकर उन्हें सलाम  करते  हुए  कहा " अरे, मामू आप  कहा से आ  रहे  है  और काफी थके  हुए  लग  रहे  है  "

"अरे तबरेज  बेटा, कैसे हो चलो  अंदर  चलो  बाहर गर्मी है " हसन  साहब  ने कहा

"नही मामू मैं तो बस  आपसे मिलने और आपकी  अमानत आपको  देने जा रहा  था  अच्छा हुआ आप  यही  मिल गए  बेवजह  मुमानी जान को तकलीफ  होती मेरी वजह  से " तबरेज  ने कहा

"अरे बेटा तकलीफ  की केसी बात है , तुम्हारा अपना घर  है  जब  दिल चाहे  आओ , तुम्हारी नाना नानी का घर  है , भले  ही आज  वो ज़िंदा नही है  अल्लाह जन्नत  नसीब  करे, लेकिन तुम्हारा मामू अभी  ज़िंदा है  तुम जब  चाहो  मेरे घर  आ  सकते  हो देखता  हूँ कौन रोकता है  मेरे भांजे  भांजीयो और मेरी बहन  को मेरे घर  आने से" हसन  साहब  ने कहा


"अरे मामू आप तो बेवजह  गुस्सा हो गए  मेरा वो मतलब  नही था , मैं तो बस  उन्हें परेशान  नही करना  चाह रहा  था  अच्छा ये लीजिये आज  का हिसाब गिन लीजिये और ये परचा  भी  रख  लीजिये अपने पास इसमें दिन भर  का लेखा  जोखा  लिखा  हुआ है  " तबरेज  ने कहा पैसे देते हुए 


"अरे बेटा तुमने दिए  है  तो पूरे  ही होंगे और अगर कम भी  होंगे तो कोई बात नही, अच्छा ये बताओ  साद कहा है  वो तुम्हारे साथ  नही आया , तुमसे पहले  तो नही आ गया वो बहुत  ही नालायक लड़का  है  "हसन  साहब  ने कहा


तबरेज  साद के बारे में अपने मामू से सुन कर  थोड़ा  आश्चर्य  हुआ और पूछा  " मामू क्या साद घर  पर  नही है  "

"घर  पर , लेकिन उसे तो मैं सुबह दुकान पर  तुम्हारे पास छोड़  कर आया  था  " हसन  साहब  ने कहा

"मामू आप  सुबह छोड़  कर  आये  थे, लेकिन दोपहर को वो मेरे साथ  खाना  खाने  आया  था लेकिन दोपहर  बाद नही आया  दुकान पर, मैं समझा  शायद कुछ  हो गया  होगा उसे आपको  फ़ोन  करना  चाहा लेकिन काम के सिलसिले में भूल  बैठा  " तबरेज  ने कहा


हसन  साहब  ने एक गहरी  सी सास लेते हुए  कहा " नालायक , ज़रूर  अपनी माँ से झूठ  बोल कर  दुकान के बहाने  दोस्तों के साथ  अवारा गर्दी करने  चला  गया  होगा, आज  आने  दो इसे पूछता  हूँ "


"अरे छोड़िये  मामू बच्चा  है  अभी, अभी  उसकी दोस्तों में उठने  बैठने  की उम्र है  थोड़ी दिनों में सीख  जाएगा " तबरेज ने समझाते  हुए  कहा और वहा  से रुक्सत हो गया ।


हसन साहब बेहद  गुस्से में घर  के अंदर  घुसे  और अपनी बीवी से साद के बारे में पूछा।

रुकय्या घबराते  हुए  बोली " वो तो दुकान पर  गया  है  लेकिन अभी  तक  आया  क्यू नही मेरा बेटा "

"दुकान पर  जाएगा तभी  तो दुकान से लोट कर  आएगा । जब  दुकान पर  गया  ही नही तो फिर  दुकान से कैसे लोट कर  आएगा  वो नामाकूल तुम्हारी आँखों  में धूल  झोक  कर  कही  और चला  गया" हसन  साहब  ने कहा


"नही ऐसा नही हो सकता , आपको  कैसे पता  आप तो दुकान गए  ही नही थे  " रुकय्या ने पूछा 


"अगर मैं दुकान नही जा रहा  हूँ तो इसका मतलब  ये नही की मुझे  वहा  के बारे में कुछ  पता  नही चलेगा । रास्ते में तबरेज  मिला था  जो घर  की और आ  रहा  था  लेकिन रास्ते में मैं मिल गया  और वो घर  नही आया  ताकि तुम्हे कोई तकलीफ  ना पहुचे  उसकी आमद  पर । उसने बाहर  ही सारा हिसाब दिया और बाहर  से ही मुलाजिमो की तरह  चला  गया  तुम्हारे ख़राब  रवइये की वजह  से ना जाने उस दिन तुमने उससे ऐसा क्या कह  दिया कि वो आज  घर  भी  आने  में कतरा रहा  था  " हसन  साहब  ने कहा


मेने ऐसा क्या कह  दिया आपकी  बहन  और उसके बच्चों को तो बस  मौका मिलना चाहिए  हम  दोनों को लड़वाने  का रुकय्या इससे पहले  कुछ  और कहती  तभी  साद घर  में आ  घुसा ।


"लो आ  गया  तुम्हारा पूत  पूछ  लो इससे कि ये कहा से आ  रहा  है  " हसन  साहब  ने रुकय्या को बीच  में ही टोकते हुए  कहा।


साद जो कि डरा  हुआ था । रुकय्या ने उससे पूछा  कि वो कहा से आ  रहा  है ।

उसने कहा दुकान से।

ये सुनते ही हसन  साहब  ने अपना आपा  खो  दिया और खींच कर  एक थप्पड़  मारा और कहा " नालायक अब हम  से झूठ भी  बोलने लगा , दोस्तों के साथ  अवारा गर्दी करने  के बाद घर  आकर  कह  रहा  है  दुकान से आ  रहा  है , जैसे हमें मालूम ही नही होगा "


रुकय्या ये देख  उसे अपने आँचल  में छिपा  कर  बोली " ये क्या कर  रहे  है  आप  बाहर वालो की बातो में आकर  जवान  बच्चे  पर  हाथ  उठा  रहे  है  कही  कुछ  कर  बैठा  तो "

"अच्छा ही है  रोज़ रोज़ के रोने से अच्छा है  की इंसान तीन  दिनों  का सोग मनाले ऐसी नालायक  औलाद  का जिसे अपने बूढ़े माँ बाप की भी कोई परवाह  नही अवारा गर्दी करके  आ  रहा  है  और मुँह पर  साफ झूठ  बोल रहा  है , पता  नही खुदा  कोनसे गुनाह की सजा  मुझे  दे रहा  है  इन दोनों नालायको के हाथो " हसन  साहब  ने कहा


रुकय्या साद को सीने  से लगा  कर  बोली " खुदा  ना करे  मेरी औलाद  को कभी  कोई आंच  भी  आये , क्या हुआ अगर  वो दुकान पर  नही गया  आज  दोपहर के बाद तो कोनसा कयामत  टूट  पड़ी  उल्टा उन दोनों की तो ईद  हो गयी  होगी ना मालिक ना उसका बेटा जितना दिल चाहे  लूट  लो दुकान को "


"अल्लाह तुम्हे अक्ल दे रुकय्या बेगम  इसके आगे  में क्या कहु  तुम्हारी आँखों पर  ममता  की अंधी  पट्टी बंधी  हुयी है  लेकिन मेरी आँखे  साफ साफ देख  सकती है  की ज़ो कुछ  भी  तुम इनके साथ कर  रही  हो, तुम इनका गलत में साथ  देकर  इनका मुस्तकबिल अँधेरे  में डाल रही  हो एक दिन तुम्हे समझ  आएगी  लेकिन जब  तक  बहुत  देर हो चुकी  होगी। क्यूंकि तुम बबूल  की खेती  कर  रही  हो और जब  उसके काटे तुम्हारे हाथो में लगेंगे  तब  तुम्हे तकलीफ  के साथ  एहसास होगा की तुमने क्या कर  दिया नादानी में " हसन  साहब  ने कहा और अंदर चले  गए 


रुकय्या साद को लेकर अंदर  आ  गयी और बोली " लग  वा दी ना मेरी भी  डांट, जब  तुझसे  कहा  था  की दुकान पर  जाना खाना  खाने  के बाद तब  तू  क्यू नही गया , देख  उन दोनों ने कैसे तेरे बाप के कान भरे  है  तेरे खिलाफ, इसलिए  कह  रही  हूँ जा दुकान पर और कैसे भी  करके  उन दोनों को वहा  से निकाल और खुद पूरी दुकान संभाल  कोई नए  कारीगर  रख  कर  नही तो वो तेरा पत्ता साफ कर  देंगे दोनों के दोनों क्यूंकि उनकी काली कमाई  जो बंद  हो जाएगी अगर तू  दुकान पर  गया  "


साद खामोश  था , अपनी माँ की बाते सुन रहा  था । आखिर  क्या होगा साद का फैसला क्या वो अपनी माँ की बातो में आकर दुकान पर जाएगा और वहा  से उन दोनों को निकाल बाहर  करेगा  या फिर नही।


जानने के लिए  पढ़ते  रहिये  हर  सोमवार को धारावाहिक  के नए  एपिसोड  में 

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

15-Jun-2022 06:18 PM

बेहतरीन

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Gunjan Kamal

15-Jun-2022 03:52 PM

शानदार भाग

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Pallavi

15-Jun-2022 07:56 AM

👌👌

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